द्वारदा शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का प्रयागराज से भी गहरा नाता रहा है। एक संन्यासी के रूप में पहली बार 1952 में प्रयागराज आने वाले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती 2021 तक हर साल माघ मेले में प्रयागराज आते रहे। 2022 के माघ मेले में अस्वस्थ होने के कारण वह यहां नहीं आ सके थे।
मौनी अमावस्या के अवसर पर शंकराचार्य कटनी में वेंटिलेटर पर थे। उनके स्थान पर उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती प्रयागराज आए और यहां से उनके लिए गंगाजल लेकर गए थे।
शंकराचार्य ने अपने जीवनकाल में प्रयागराज से कई आंदोलन शुरू किए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य और मनकामेश्वर मंदिर के प्रमुख आचार्य स्वामी श्रीधरानंद ब्रह्मचारी बताते हैं कि 80 के दशक में गुरुजी ने सबसे पहले राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू किया था। 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनके कहने पर ही बाबरी मस्जिद को खोला था। प्रयागराज में शंकराचार्य ने आंदोलन का ऐलान किया।
इसके बाद अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 1995 में राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने रामालय ट्रस्ट का गठन भी प्रयागराज में किया। यहां से अयोध्या जाने का ऐलान किया था। इसके बाद वह प्रयागराज से आगे बढ़े तो चुनार में शंकराचार्य को नजरबंद कर दिया गया। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर वह हमेशा से ही चर्चा में रहे। शंकराचार्य वर्ष 2019 के कुम्भ मेले में राममंदिर की नींव के लिए चार ईंट लेकर प्रयागराज आए थे।
यहां धर्म संसद में उन्होंने अयोध्या कूच का नारा दिया था। जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें रोकने के लिए बहुत प्रयास किए। सरकार की ओर से विशेष आग्रह करने पर शंकराचार्य माने और फिर यहां से अयोध्या नहीं गए।