कफ सिरप तस्करी: कैसे बना करोड़ों का खेल? STF ने बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह को किया गिरफ्तार, खुला पूरा सिंडिकेट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश STF ने कफ सिरप तस्करी से जुड़े बड़े नेटवर्क का भंडाफोड़ करते हुए बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह को लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ पहले ही लुक आउट सर्कुलर जारी था। जानकारी के अनुसार, आलोक कोर्ट में सरेंडर करने की तैयारी में था और उसने सरेंडर अर्जी भी दाखिल कर दी थी, लेकिन उससे पहले ही STF ने उसे दबोच लिया।
गिरफ्तारी के बाद STF द्वारा की गई पूछताछ में आलोक ने इस तस्करी सिंडिकेट से जुड़ी कई चौंकाने वाली जानकारी दी, जिसने पूरे नेटवर्क की परतें खोल दीं।
कफ सिरप तस्करी का करोड़ों का नेटवर्क ऐसे खड़ा हुआ
पूछताछ में आलोक सिंह ने बताया कि आजमगढ़ निवासी विकास सिंह के माध्यम से उसकी मुलाकात शुभम जायसवाल से कराई गई थी। शुभम, एबॉट कंपनी के प्रतिबंधित कफ सिरप फैंसिडिल की अवैध तस्करी से जुड़ा था और रांची (झारखंड) में शैली ट्रेडर्स के नाम से फर्म संचालित करता था।
पश्चिम बंगाल–बांग्लादेश में कोडीनयुक्त सिरप की भारी मांग
फैंसिडिल में पाए जाने वाले कोडीन के नशे के चलते इसकी बड़ी मांग
– पश्चिम बंगाल
– बांग्लादेश
के तस्कर गिरोहों में रहती है।
यही मांग अवैध कारोबार को करोड़ों में बदल देती है।
आलोक सिंह कैसे बना तस्करी गैंग का हिस्सा?
विकास सिंह ने आलोक को इस अवैध कारोबार के बड़े फायदे बताए। इसके बाद आलोक और उसका साथी अमित टाटा इस नेटवर्क में शामिल हो गए। STF पहले ही अमित टाटा को गिरफ्तार कर चुकी है।
फर्जी फर्मों के नाम पर चलता था अवैध कारोबार
पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि शुभम जायसवाल ने अपने साथियों वरुण सिंह, गौरव जायसवाल और विशाल मेहरोत्रा के साथ मिलकर फर्जी फर्मों के नाम पर कारोबार का विस्तार किया।
1. धनबाद में खोली गई ‘श्री मेडिकल एजेंसी’
– 2024 में यह फर्म आलोक सिंह के नाम पर खोली गई
– इसमें आलोक और अमित टाटा ने 5-5 लाख रुपये निवेश किए
– शुभम की टीम और उसका चार्टर्ड अकाउंटेंट तुषार इसका पूरा लेनदेन संभालते थे
– सिर्फ कुछ महीनों में आलोक व अमित को 20–22 लाख रुपये का मुनाफा दिया गया
2. बनारस में ‘मां शारदा मेडिकल’
– यह फर्म भी आलोक के नाम पर खोली गई
– संचालन शुभम की टीम द्वारा किया जाता था
– यहां से आलोक को करीब 8 लाख रुपये मिले
बाद में एबॉट कंपनी ने फैंसिडिल का उत्पादन बंद कर दिया, जिसके बाद नेटवर्क और भी ज्यादा अवैध तरीकों पर निर्भर हो गया।
गिरफ्तारी के बाद दुबई भागा सिंडिकेट का सरगना
STF और पुलिस जब नेटवर्क पर शिकंजा कसने लगी और सदस्यों सौरभ त्यागी व विभोर राणा की गिरफ्तारी हुई, तो मुख्य सरगना शुभम जायसवाल अपने साथियों
– वरुण सिंह
– गौरव जायसवाल
के साथ दुबई फरार हो गया।
शुभम फर्जी फर्मों, फर्जी बिल, ई-वे बिल और दस्तावेजों का इस्तेमाल कर फैंसिडिल की अवैध खरीद–फरोख्त को ‘वैध’ दिखाता था, जबकि असल में पूरा माल तस्करों को बेचा जाता था।
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हासिल किया था ड्रग लाइसेंस
पूछताछ में पता चला कि आलोक सिंह ने फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र और फर्जी हलफनामा जमा कर ड्रग लाइसेंस हासिल किया था।
अमित टाटा की गिरफ्तारी के बाद आलोक ने कोर्ट में सरेंडर की अर्जी लगा दी थी, लेकिन STF ने उसे पहले ही गिरफ्तार कर लिया।
अब STF आलोक को कस्टडी रिमांड में लेकर पूरे नेटवर्क, फंडिंग, बिचौलियों और फर्जी फर्मों की जांच आगे बढ़ाएगी।
आलोक का पुराना आपराधिक इतिहास भी आया सामने
जांच में यह भी पता चला कि आलोक सिंह पर 2006 में लखनऊ के आशियाना थाने में डकैती का मुकदमा दर्ज है।
इससे अब पुलिस आलोक के पुराने नेटवर्क और संपर्कों की भी जांच कर रही है।


