कलम की धार से पत्रकारों की पहचान : तामीर हसन शीबू

कलम की धार से पत्रकारों की पहचान : तामीर हसन शीबू

खामियों की पहरेदारी के लिए जरूरत है चिंतन मंथन करने की

रिपोर्ट–मोहम्मद अरसद
जौनपुर। कलमकार समाज का प्रहरी होता है। वह समाज के पीड़ितों, दबे , कुचले, निरीह व असहायों की आवाज शासन प्रशासन में पहुंचाने के लिए सेतु का काम करता है। वह ही अच्छे बुरे को बताने के साथ ही समाज को आईना दिखाता है। इसीलिए आज भी पत्रकारिता को व्यापार नही, पवित्र मिशन व कर्म बंधन माना जाता है। समाज को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना ही उसका प्रमुख उद्देश्य है।
पत्रकारिता का महत्व उसके कलम पर निर्भर करता है। कलमकार किसी भीड़ का हिस्सा नहीं, बल्कि अगली पंक्ति का संवाहक है। यह गौरवमयी प्रतिस्ठा तभी अक्षुण्य रह सकता है जब मीडिया साथी अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करें।
सबसे महत्वपूर्ण बातें यह है कि यधपि संविधान के पन्नों में हम कलम के सिपाहियों का जिक्र नही है। किन्तु आज भी कलम के बल पर समाज पटल पर चुतुर्थ स्तम्भ के रूप में स्थापित हूँ। यह मीडिया जगत के लिये सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह चारों में वह खंभा है जिसके ढ़हने से लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका में भूचाल आ जाएगा।
आज वर्तमान हालात पर नजर डाला जाए तो पता चलेगा कि देश में अपराधियों की संख्या अधिक है। जैसे निर्माण कार्य मानक के विपरीत हुआ है। तो निश्चित ही कमीशन शीर्ष अधिकारी से लेकर राजनेता के जेब में पहुंचा होगा, तबादला से लेकर कर बंधी महीनवारी तक बड़े कार्यालयों में पैसे का खेल चल रहा है। एक खाकी वर्दी वाला किसी अपराधी को पकड़ता है और उससे कुछ चढ़ावा लेकर छोड़ देता है तो वह किस श्रेणी में आता है, यह प्रश्न समाज के बीच में आज भी एक पहेली बना हुआ है।
इसे खाकी विभाग के सभी शीर्ष अधिकारी बखूबी जानते हैं कि वह भी महाअपराधी की श्रेणी में आ जाता है। किन्तु कार्रवाई की नौबत जब आती है तो पता नही क्यों हाथ खड़े हो जाते है।
यद्यपि पत्रकारिता अनेक चुनौतियों के साथ जोखिम भरा कार्य है। फिर भी समाज की खामियों को उजागर करना ही सच्ची पत्रकारिता है। यह सच भी है जब कोई कलमकार किसी राजनेता के गले की हड्डी बनता है। तो उसे उसके कोप का शिकार होना पड़ता है।
इसमे उसे घबराने की जरूरत नही है। यह ध्रुव सच है कि वह उसके प्रलोभन व भोजभात में अगर न जायँ तो राजनेता उसका कुछ बिगाड़ नही सकता है।
जनता भी उनकी तरफ सच व झूठ जानने के लिए निहारती रहती है। ऐसे में हमें और मीडिया साथियों को आज चिंतन मंथन करने की जरूर क्यों पड़ रही है। यह भी अपने आप में एक अहम सवाल है।

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