थाने में मूर्ति स्थापित की गई पूरे आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले धन सिंह कोतवाल की याद में मेरठ सदर

एक दिन ब्राह्मण ने फौजियों को पानी देने से मना कर दिया और कहा कि तुम अपने मुंह से जो कारतूस 

 अगर तुम इस कुएं से पाअंग्रेजो के खिलाफ पहला आंदोलन 1857 में शुरू हुआ था, ये आंदोलन देश की राजधानी से सटे उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आंदोलन पानी पीने से मना करने के बाद शुरू हुआ था |आपको पूरी कहानी बताते हैं, उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में साल 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ हिंदुस्तानी फौज ने बगावत की थी. जिन फौजियों ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत की थी वह अंग्रेजों के लिए ही काम करते थे और अंग्रेजी हुकूमत ही उनको पालती थी.नी पियोगे तो पानी सारा अशुद्ध हो जाएगा. इतना सुनते ही हिंदुस्तानी फौजियों के होश फाख्ता हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी.

अंग्रेजों के आदेश पर जुल्म करते है फौजी

 तनख्वाह पर ही हिंदुस्तानी फौजियों का गुजारा हुआ करता था. यही फौज थी जो अपने देश के नागरिकों को ही अंग्रेजो के आदेशों पर मारा पीटा करती थी और यहां तक की उनको जेल में भी डाला करती थी.. लेकिन 1857 में इन्ही फौजियों ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. बात मेरठ के कैंटोनमेंट क्षेत्र की है, यहां पर एक कुआं हुआ करता था जहां पर अंग्रेजों की फौज में शामिल हिंदुस्तानी फौजी पानी पीने आया करते थे.

इसी जगह पर भोले बाबा का स्वयंभू शिवलिंग था, शिवलिंग के पास में ही ये कुआं था, क्योंकि बाबा भोलेनाथ का शिवलिंग था तो उसकी पूजा अर्चना करने के लिए एक ब्राह्मण वहां रहते थे. वो ब्राह्मण कुएं में से जल लेते थे और बाबा भोलेनाथ की रोज सुबह शाम पूजा किया करते थे. हर रोज शाम के समय भारतीय फौजी यहीं आ कर पानी पिया करते थे,

एक दिन ब्राह्मण ने फौजियों को पानी देने से मना कर दिया और कहा कि तुम अपने मुंह से जो कारतूस छीलते हो वो गाय और सुअर की चर्बी से बनता है इसलिए अगर तुम इस कुएं से पानी पियोगे तो पानी सारा अशुद्ध हो जाएगा. इतना सुनते ही हिंदुस्तानी फौजियों के होश फाख्ता हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी. हालाकि जिन कारतूस में गाय और सुअर के मास होने की बात कही गई है वो कारतूस फौज को 1857 में फरबरी के महीने में मिले थे.

 जानिए क्या है पूरी कहानी

1857 की क्रांति की शुरुआत करने वाली जगह पर आज भले ही कुआं सुख गया हो लेकिन भोलेनाथ के शिवलिंग की पूजा आज भी होती है, उस जगह आज बाबा का भव्य मंदिर है, जो आज बाबा औघड़नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहां के पुजारी चक्रधर त्रिपाठी का दावा है कि उनके दादा के जो दादा थे जिनका नाम बाबा शिव चरण दास था वो 1857 में इसी कुएं से पानी पिलाया करते थे, एक दिन बाबा ने फौजियों को पानी पिलाने से मना कर दिया था और कहा कि तुम कारतूस छीलते हो,वो कारतूस गाय और सुअर की चर्बी से बनता है. बस फिर क्या था इतना सुनते ही अंग्रेजो की फौज में काम करने वाले हिंदुस्तानी फौजियों ने बगावत कर दी और अंग्रेजो से लोहा ले लिया,

धीरे धीरे कर के ये ज्वाला मुखी देश के कोने कोने में फैल गई थी. हालांकि इस आंदोलन का असर ये हुआ की अंग्रेजो ने उनके खिलाफ बगावत करने वाले लोगो को मारना शुरू कर दिया था और काफी लोगो को फांसी से लटका दिया था. इतिहास बताता है कि शहीद मंगल पांडे को भी इसी विद्रोह की वजह से आंदोलन की शुरुआत होने से करीब एक महीने पहले 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई थी. 10 मई 1857 को असली आंदोलन छेड़ा गया था,

जो मेरठ की सरजमीं से शुरू हुआ था। इस पूरे आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले धन सिंह कोतवाल की याद में मेरठ सदर थाने में मूर्ति स्थापित की गई है. बता दे कि अंग्रेजो ने जब विद्रोह करने वाले लोगो को सजा देनी शुरू की थी,तब उस कार्यवाही में बाबा शिव चरणदास भी अंग्रेजो से बचने के लिए फरार हो गए थे. पुजारी चक्रधर त्रिपाठी कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ ने यहाँ विराजमान हो कर आशीर्वाद दिया जिससे हिंदुस्तानियों के अंदर हिम्मत जागी. ऐसा ही मानना अन्य लोगो का भी है.

10 मई 1857 को ब्रिटिश विरोधी जनक्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले धन सिंह गुर्जर को क्रांति का जनक माना गया। धन सिंह गुर्जर इस दिन कोतवाल की भूमिका में थे और सदर थाने में उनकी तैनाती थी. विद्रोह की पूरी रणनीति धन सिंह गुर्जर उर्फ कोतवाल ने बनाई थी. इतिहास बताता है कि 10 मई 1857 को धन सिंह गुर्जर उर्फ कोतवाल ने “मारो फिरंगी” नारा दिया था.

हिंदुस्तानी फौज को कहा जाता जाता था कालों की फौज

अंग्रेजो का रंग गोरा हुआ करता था और हिंदुस्तानी अंग्रेजो के मुकाबले काले हुआ करते थे। अंग्रेजो ने हिंदुस्तानी फौज को कालो की फौज का नाम दिया था इसलिए हिंदुस्तानी फौज काली पलटन के नाम से जानी जाती थी। बाबा औघड़नाथ मंदिर को आज भी काली पलटन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

भोलेबाबा का आशीर्वाद मानते है लोग

भोलेनाथ का शिवलिंग इस जगह पर आज भी विराजमान है, लाखों भक्त हर महीने यहां बाबा भोलेनाथ की पूजा करने आते हैं। सावन के महीने में विशेष रूप से भोलेनाथ की पूजा अर्चना होती है। यहां आने वाले भक्तो का कहना है कि बाबा भोलेनाथ इस स्थान पर खुद प्रकट हुए थे और उन्ही के आशीर्वाद से देश को आजाद कराया गया।

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