नक्सलियों से मुक्त हुआ बूढ़ापहाड़,पहली बार उतरा सुरक्षा बलों का एमआई हेलीकॉप्टर
नक्सलियों से मुक्त हुआ बूढ़ापहाड़,पहली बार उतरा सुरक्षा बलों का एमआई हेलीकॉप्टर
रांची।झारखंड के रांची के बूढ़ापहाड़ पर शुक्रवार को पहली बार मिग हेलीकॉप्टर उतारकर झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन के सफल होने की पुष्टि की है।ऑपरेशन बूढ़ापहाड़ को नक्सलमुक्त कराने के लिए अंतिम चरण में पुलिस और सीआरपीएफ ने ऑपरेशन ऑक्टोपस चलाया था। इस ऑपरेशन को पूरी सफलता शुक्रवार को मिल गई।बूढ़ापहाड़ पर आधे दर्जन से अधिक कैंप भी बना दिए गए हैं।
आपको बता दें कि झारखंड समेत तीन राज्यों में नक्सलियों के मुख्यालय के तौर पर बूढ़ापहाड़ का इस्तेमाल पिछले तीन दशक से हो रहा था। 1990 से ही घोर नक्सल प्रभाव वाला इलाका रहा बूढ़ापहाड़ झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के लिए बड़ा आश्रय था।केंद्रीय गृह मंत्रालय के टास्क पर काम करते हुए झारखंड पुलिस ने 32 साल से नक्सली गतिविधियों के केंद्र रहे बूढ़ापहाड़ को नक्सल मुक्त करा लिया है।
100 की संख्या में होता था हथियारबंद दस्ता
1990 में माओवादी संगठन के उभार के बाद बूढ़ापहाड़ पर हमेशा ही पोलित ब्यूरो या सेंट्रल कमेटी मेंबर कैंप करते थे। बड़े माओवादियों के साथ 100 की संख्या में हथियारबंद दस्ता होता था। बूढ़ापहाड़ अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह, सुधाकरण, मिथलेश महतो, विवेक आर्या, प्रमोद मिश्रा और विमल यादव जैसे शीर्ष माओवादियों का कार्यक्षेत्र रहा। 2019 में देवकुमार की मौत के बाद सुधाकरण को जिम्मेदारी मिली, लेकिन सुधाकरण के तेलंगाना में सरेंडर के बाद विमल यादव को यहां की कमान सौंपी गई थी।
बूढ़ापहाड़ तक पहुंचायी जाती थी लेवी की भारी भरकम
झारखंड में लातेहार, लोहरदगा, गुमला में कोयल शंख जोन के जरिए बड़े पैमाने पर लेवी की वसूली होती थी। सरकारी ठेकों, बीड़ी पत्ता कारोबारियों से लेवी वसूली कर भारी रकम बूढ़ापहाड़ के नक्सलियों तक पहुंचायी जाती थी। नक्सलियों को पैसे झारखंड के इलाके से मिलते थे, जबकि छत्तीसगढ़ के रास्ते वहां रहने वाले नक्सलियों तक रसद पहुंचायी जाती थी। झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन अमोल वी होमकर के मुताबिक, पुलिस ने पहले नक्सलियों के लेवी तंत्र पर रोक लगाने की योजना बनायी।
बुद्धेश्वर उरांव का काम था लेवी वसूलकर पहुंचाना
लेवी वसूलकर नक्सलियों के शीर्ष तक पहुंचाने का काम रीजनल कमांडर बुद्धेश्वर उरांव का था,लेकिन सुरक्षा बलों ने बुद्धेश्वर को 15 जुलाई 2021 को कुरूमगढ़ में मार गिराया था। इसके बाद लेवी वसूली की जिम्मेदारी रवींद्र गंझू को मिली। फरवरी 2022 में पुलिस ने रवींद्र गंझू के दस्ते के खिलाफ ऑपरेशन डबल बुल शुरू किया था। तब रवींद्र दस्ते के एक दर्जन से अधिक नक्सली पकड़े गए और बड़े पैमाने पर हथियार भी बरामद किए गए थे। इसके बाद से बूढ़ापहाड़ तक पहुंचने वाली लेवी पूरी तरह बंद हो गई।
रणनीति के तहत आगे बढ़ते हुए कैंप बनाती रही पुलिस
पुलिस ने 3 सितंबर से बूढ़ापहाड़ पर चढ़ने की शुरुआत की थी। इस दौरान नक्सलियों के कई ठिकानों पर शेलिंग कर आगे बढ़ती रही।इस दौरान महत्वपूर्ण इलाकों में कैंप बनाया। छत्तीसगढ़ के इलाके पुंदाग और पीपराढीपा में भी कैंप स्थापित कर सुरक्षाबलों की तैनाती की। बूढ़ा नदी पर पुल बनाया। अब हेलीकॉप्टर पहुंचने से सुरक्षाबलों को रसद पहुंचाने में आसानी होगी। पूर्व में नक्सलियों ने बूढ़ापहाड़ में आईईडी लगा रखा था। इस वजह से पुलिस को भारी नुकसान हुआ। 2018 में यहां छह जवान शहीद भी हो गए थे।
ऑपरेशन आईजी अमोल वी होमकर ने कहा कि बूढ़ापहाड़ का नक्सल मुक्त होना पुलिस के लिए बड़ी सफलता है। पुलिस ने पूरे बूढ़ापहाड़ को अपने कब्जे में ले लिया है। पुलिस रणनीतिक लिहाज से यहां कैंप बना रही है। खदेड़े जा चुके नक्सलियों की गिरफ्तारी के लिए अभियान जारी है।
नक्सलियों की आपसी कलह का मिला फायदा
सुरक्षाबलों ने यहां नक्सलियों के आपसी कलह का फायदा उठाया। बिरसाई समेत कई नक्सलियों ने या तो सरेंडर किए या गिरफ्तार हुए। 2021 में नक्सलियों ने मिथलेश को यहां भेजा, लेकिन बाद में नक्सलियों के बीच आपसी कलह के कारण मिथलेश बूढ़ापहाड़ से निकलकर बिहार चला गया, जहां वह गिरफ्तार हो गया। इसके बाद बूढ़ापहाड़ पर सैक कमांडर मारकुस बाबा उर्फ सौरभ, सर्वजीत यादव, नवीन यादव अपने दस्ते के साथ कैंप कर रहे थे। पुलिस अभियान के बाद दस्ता बूढ़ापहाड़ से जा चुका है।
चार किरदार, जिनकी वजह से मुक्त हुआ बूढ़ापहाड़
बूढ़ापहाड़ को नक्सलियों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा ने खुद उठायी थी।डीजीपी के साथ आईजी अभियान अमोल वी होमकर, डीआईजी जगुआर अनूप बिरथरे, स्पेशल ब्रांच व एसआईबी की एसपी शिवानी तिवारी की भूमिका अहम रही। बूढ़ापहाड़ और उसके पूर्व ऑपरेशन डबल बुल के लिए सूचना जुटाने से लेकर अभियान चलाने का जिम्मा आईजी अभियान अमोल वी होमकर व अनूप बिरथरे को था। शिवानी तिवारी जो गढ़वा में रहते हुए अभियान का नेतृत्व कर चुकी थीं, उन्हें भी अभियान में जोड़ा गया था।