मृणाल और दुलकर की बेहतरीन अदाकारी, इधर के राम, उधर की सीता बने सीताराम

सार

 ‘सीता रामम’ तेलुगू में बनी एक फिल्म है जिसे हिंदी में अब रिलीज किया गया है। फिल्म अगर हिंदी में ही बनी होती तो अब तक जमकर ट्रोल हो रही होती। फिल्म का हीरो दुलकर सलमान है। किरदार वह राम का कर रहा है। फिल्म की हीरोइन मृणाल ठाकुर है और जो किरदार वह फिल्म में कर रही है, वह पारंपरिक हीरोइन का नहीं है।

सीता रामम
विस्तार-:

इंटरनेट पर पायरेसी वाली हिंदी फिल्में देखने वालों के लिए फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) ट्रोलिंग का एक नया बहाना हो सकती है। सीता और राम की आदर्श महागाथा के तार दक्षिण भारत के एक निर्माता और निर्देशक ने छेड़े हैं। फिल्म शुरू होती है तो इसमें एक संवाद आता है, ‘कोई हमारे जैसा नहीं है क्या?’ ये संवाद लंदन में पढ़ रही एक पाकिस्तानी फौजी अफसर की पोती बोल रही है। संदेश साफ है कि पढ़ना लिखना इंसान को प्रगतिशील बना दे, जरूरी नहीं है। शिक्षित होने और ज्ञानी होने की ये बारीक लकीर है। इसी बारीक लकीर पर बनी है फिल्म ‘सीता रामम’। ‘सीता रामम’ तेलुगू में बनी एक फिल्म है जिसे हिंदी में अब रिलीज किया गया है। फिल्म अगर हिंदी में ही बनी होती तो अब तक जमकर ट्रोल हो रही होती। फिल्म का हीरो दुलकर सलमान है। किरदार वह राम का कर रहा है। फिल्म की हीरोइन मृणाल ठाकुर है और जो किरदार वह फिल्म में कर रही है, वह पारंपरिक हीरोइन का नहीं है। फिल्म ‘सीता रामम’ एक प्रेम कहानी है और इसकी पृष्ठभूमि ऐसी है जो आज के हालात के लिए बिल्कुल सामयिक है।

सीता रामम
सन 64 में शुरू हुई प्रेम कहानी
भारत पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के सात साल पहले से फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) की कहानी शुरू होती है। फिल्म उस सूत्र को तलाशने की कोशिश करती है जिसके चलते कश्मीरियों ने भारतीय सेना को अपना दुश्मन मान लिया। कारगिल में ठंड से ठिठुरते फौजियों के लिए रसद लेकर आते स्थानीय भी तब आतंकवादी से दिखते हैं। नजरिये का सवाल जो है। नजरिया ही फिल्म ‘सीता रामम’ का असल डीएनए है। धर्म की कट्टरता के बीच लिखी गई एक प्रेम कहानी में धर्म का असली मर्म है, ‘परहित सरिस धरम नहिं भाई’। अपने सपनों की दुनिया बसाने को इकट्ठा की गई अपनी सारी बचत एक फौजी जब वेश्यालय में मिली अपनी मुंहबोली बहन और उसकी सभी संगिनियों को आजाद कराने में खर्च कर देता है तो समझ आता है कि धर्म का असली मतलब क्या है!
सीता रामम
सीतालक्ष्मी और उसकी लक्ष्मण रेखा
फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) दो कालखंडों में एक साथ चलती है। 1964 में शुरु हुई कहानी एक प्रेम कहानी है जिसमें रेडियो पर एक एकाकी लेफ्टिनेंट राम की वीरता की कहानी सुनकर देश भर के लोग उसे चिट्ठियां लिखने लगते हैं। इसी में एक चिट्ठी सीतालक्ष्मी की आती है जो राम को अपना पति मानती है। बातें भी सारी वह ऐसी ही लिखती है। राम अपनी सीता को खोजने निकलता है। एक और कहानी जो 1984 में शुरू होती है लंदन से। अपने बाबा की विरासत हासिल करने से पहले लंदन में पढ़ी पाकिस्तानी युवती उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने भारत आती है। उसके पास एक चिट्ठी है जो उसे सीतालक्ष्मी को देनी है। लेकिन, सीतालक्ष्मी की असल पहचान क्या है? इसका खुलासा होने के साथ ही फिल्म का पूरा ग्राफ बदल जाता है। कहानी समाज, दस्तूरों और परिवार की तंग गलियों से होकर गुजरती है। हर नुक्कड़ पर एक नया मोड़ है। एक नया किरदार है। एक नया एहसास है और है एक नया सिनेमा।
सीता रामम
हनु राघवपुडी का लाजवाब निर्देशन
निर्देशक हनु राघवपुडी ने फिल्म को वैसे ही कैनवस पर बनाया है जैसे कभी मणिरत्नम ने  ‘रोजा’ रची थी। हैदराबाद से लेकर कश्मीर तक का विस्तार पाने वाली फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) की अंतर्कथा आंखें खोल देने वाली है। हो सकता है उत्तर भारत के दर्शकों मे हाल के दिनों में फैली सोच से ये फिल्म मेल न खाए, लेकिन ऐसी फिल्में खुद भी देखना जरूरी है और नई पीढ़ी को दिखाना भी। इंसानियत को हर धर्म से आगे रखने की बात कदम कदम पर करती फिल्म ‘सीता रामम’ में हनु राघवपुडी ने कुनैन की गोली रसगुल्ले में छिपाकर खिलाई है। खाने वाला भले उसे गुठली समझकर थूक दे लेकिन सामाजिक सौहार्द्र की असल दवाई यही है। तुर्की टोपी वाले लोगों के बीच से निकलकर राम तक पहुंचने वाली इस प्रेम गाथा का हर फ्रेम मोहित करने वाला है। पी एस विनोद और श्रेयस की सिनेमैटोग्राफी देखने वाले को हौले हौले सहलाती चलती है। सिनेमा के कैनवस पर खूबसूरती की एक नई परिभाषा गढ़ती चलती है।
मृणाल ठाकुर, सलमान दलकीर, फिल्म सीता रामम
दुलकर और मृणाल अव्वल नंबर
फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) में मलयालम सिनेमा के नामचीन अभिनेता दुलकर सलमान हैं। यह उनकी दूसरी तेलुगू फिल्म है। मराठी और हिंदी सिनेमा की काबिल  अभिनेत्री मृणाल ठाकुर ने इस फिल्म से तेलुगू सिनेमा में डेब्यू किया। दोनों को देखकर लगता है कि राम और सीता की इससे बेहतर अदाकारी भला और कौन कर सकता है? एक युवा फौजी की दृढ़ता, एक मासूम प्रेमी की निश्छलता और एक अनाथ की परिवार पाने की उत्कंठा, सबको दुलकर ने इस फिल्म में जिया है। और, मृणाल ठाकुर! इतनी खूबसूरत तो कोई अप्सरा ही दिख सकती है। पूरी फिल्म में वह भारतीय परिधानों में ही अधिकतर दिखती हैं। साड़ियों में कमाल की खूबसूरत दिखीं मृणाल ने अभिनय भी बेहतरीन किया है। अच्छा हुआ कि ये फिल्म हिंदी में डब होकर रिलीज हो गई। नहीं तो दुलकर और मृणाल की एक बढ़िया फिल्म देखने से हिंदी सिनेमा के दर्शक जरूर चूक जाते।
सीता रामम
देखें कि न देखें
हनु राघवपुडी और अश्विनी दत्त ने फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) की कल्पना एक अखिल भारतीय फिल्म के रूप में ही की है। इसमें दक्षिण से लेकर मुंबई और कोलकाता तक के कलाकारों को चुन चुनकर लिया गया है। टीनू आनंद, सचिन खेडेकर और जीशु सेनगुप्ता के साथ साथ भूमिका चावला, प्रकाश राज सब छोटे छोटे लेकिन ठोस किरदारों में नजर आए। फिल्म की खूबियों के साथ इसकी खामियों पर भी नजर डालें तो फिल्म का संगीत तेलुगू में भले सुपरहिट रहा हो, हिंदी में इन्हें डब करने की वरुण ग्रोवर से लेकर कुमार तक की कोशिशें असरदार नहीं हैं। सुस्त संपादन फिल्म ‘सीता रामम’ (Sita Ramam Hindi) की एक और कमजोरी है। करीब दो घंटे चालीस मिनट की ये फिल्म कहीं कहीं लंबी खिंचने लगती है। इन दो कमियों को छोड़ दें तो फिल्म इस सप्ताहांत की मस्ट वॉच फिल्म है।

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