राजस्थान CM पद के दावेदार बालकनाथ योगी की कहानी; 6 साल की उम्र में बने संन्यासी
राजस्थान CM पद के दावेदार बालकनाथ योगी की कहानी; 6 साल की उम्र में बने संन्यासी
विधानसभा नतीजों से एक दिन पहले। तिजारा सीट से प्रत्याशी महंत बालकनाथ योगी ने बीजेपी हेडक्वार्टर में संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाकात की। हालांकि उन्होंने इसे रूटीन मीटिंग बताया।
3 दिसंबर के नतीजों में बीजेपी को 115 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत मिल गया।
नतीजों के बाद देर रात खबरें चलीं कि पीएम नरेंद्र मोदी के बुलावे पर बालकनाथ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ दिल्ली पहुंच गए हैं। अगले दिन संसद कंपाउंड में पत्रकारों ने सीएम पद के बारे में पूछा- तो बालकनाथ गोलमोल जवाब दे गए।
इस घटनाक्रम ने बालकनाथ योगी के राजस्थान सीएम पद की रेस में शामिल होने को हवा दी है। 39 साल के बालकनाथ योगी मठ के महंत, यूनिवर्सिटी के चांसलर, अलवर से सांसद और अब तिजारा से विधायक हैं। इस स्टोरी में उनके बचपन से लेकर राजस्थान मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल होने तक की कहानी…
यादव परिवार में जन्म, 6 साल में संन्यास
16 अप्रैल, 1984। राजस्थान के अलवर जिले का कोहराना गांव। किसान सुभाष यादव के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। घर का माहौल धार्मिक था। बच्चे के दादा फूलचंद यादव साधू-संतों की संगत में रहते थे। पिता सुभाष भी महंत खेतनाथ के शिष्य थे और उनके दरबार में आते-जाते रहते थे।
महंत खेतनाथ ने इस बच्चे का नाम गुरुमुख रखा। गुरुमुख जब 6 साल के हुए तो उन्हें अध्यात्म की पढ़ाई के लिए खेतनाथ के नीमराना आश्रम भेज दिया गया। यहां छात्रों को संन्यासी जीवन ही जीना पड़ता था। तभी से गुरुमुख भी संन्यासी जीवन जीने लगे।
ये नीमराना स्थित आश्रम में बने बालकनाथ के पहले गुरु महंत खेतनाथ की मूर्ति है।
ये नीमराना स्थित आश्रम में बने बालकनाथ के पहले गुरु महंत खेतनाथ की मूर्ति है।
दीक्षा देने के बाद गुरुमुख को महंत चांदनाथ के पास भेज दिया गया। नाथ संप्रदाय के चांदनाथ अस्थल बोहर में बाबा मस्तनाथ मठ के महंत थे। महंत चांदनाथ ने ही गुरुमुख को बालकनाथ नाम दिया।
महंत चांदनाथ ने स्कूल, अस्पताल और राजनीति जमाई
मौजूदा बालकनाथ को समझने के लिए उनके गुरु चांदनाथ का सफर जानना जरूरी है।
21 जून 1956 को दिल्ली के बेगमपुर में जन्मे चांदनाथ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से हिंदी में बीए किया। 1978 में उन्होंने महंत श्रेयोनाथ से दीक्षा ली और रोहतक के अस्थल बोहर स्थित बाबा मस्तनाथ मठ से जुड़ गए। 1985 में वे इस मठ के महंत बन गए।
महंत चांदनाथ का रुझान पढ़ाई-लिखाई की तरफ ज्यादा था। उन्होंने रोहतक और आसपास कई कॉलेज की स्थापना की। बाद में ये सभी कॉलेज बाबा मस्तनाथ ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन के अंतर्गत आ गए।
2012-13 में इस ग्रुप को हरियाणा सरकार ने यूनिवर्सिटी की मान्यता दे दी। चांदनाथ इसके कुलपति बन गए। महंत चांदनाथ रोहतक और हनुमानगढ़ में 5 चैरिटेबल अस्पताल भी चलाते थे।
दूसरी तरफ चांदनाथ का राजनीतिक करियर भी तेजी से फल-फूल रहा था।
2004 के लोकसभा चुनाव में अलवर सीट से वो बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस के करण सिंह यादव ने उन्हें हरा दिया।
इसी साल राजस्थान में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में चांदनाथ को बीजेपी ने टिकट दिया। वो कोटपूतली जिले की बहरोड़ सीट से चुनाव लड़े और विधायक बन गए। 2014 में राजस्थान के अलवर से फिर सांसद बन गए। इस दौरान बालकनाथ अपने गुरु चांदनाथ के साथ समर्पित भाव से लग रहे।
ये तस्वीर उस समय की है, जब चांदनाथ ने बालकनाथ को अपना उत्तराधिकारी चुना था।
2016 में चांदनाथ ने बालकनाथ को उत्तराधिकारी चुन लिया
महंत चांदनाथ को 60 साल की उम्र तक कई बीमारियों ने घेर लिया। उन्हें थ्रोट कैंसर भी हो गया। शारीरिक अवस्था को भांपते हुए चांदनाथ ने 29 जुलाई 2016 को अपने शिष्य बालकनाथ को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया। बालकनाथ अब महंत बालकनाथ बन गए। वो नाथ संप्रदाय के 8वें संत बने।
जब बालकनाथ को संत चुना जा रहा था, तब उस भव्य कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ और बाबा रामदेव भी पहुंचे थे। अगले ही साल 17 सितंबर 2017 को चांदनाथ का निधन हो गया। जिसके बाद उनकी पूरी विरासत को बालकनाथ योगी ने संभाला।
बालकनाथ के गुरु चांदनाथ के निधन के बाद आसन मुद्दा में उन्हें समाधि दी गई थी।
बालकनाथ के गुरु चांदनाथ के निधन के बाद आसन मुद्दा में उन्हें समाधि दी गई थी।
मठ ही नहीं, राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बने बालकनाथ
चांदनाथ के निधन के बाद बालकनाथ नाथ संप्रदाय के रोहतक स्थित सबसे बड़े अस्थल बोहर मठ के मठाधीश हो गए। इस मठ से संचालित होने वाली बाबा मस्तनाथ यूनिवर्सिटी और तमाम अस्पतालों की कमान भी उनके हाथ में आ गई।
2019 में बीजेपी ने अलवर लोकसभा सीट से चांदनाथ के शिष्य बालकनाथ को ही टिकट दिया। महज 35 साल की उम्र में वो चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को 3 लाख से भी अधिक वोटों से मात दी थी। तब से ही बालकनाथ अलवर क्षेत्र में काफी एक्टिव हैं।
बालकनाथ जिस नाथ संप्रदाय से जुड़े हैं, उसमें 12 पंथ होते हैं…
योगी आदित्यनाथ के बाद नाथ संप्रदाय के दूसरे सबसे बड़े नेता हैं बालकनाथ
चांदनाथ के निधन के बाद बालकनाथ की इमेज एक मजबूत हिंदू नेता के तौर पर बनने लगी। रोहतक, हनुमानगढ़ और मेवात में उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ने लगी। शुरुआत में बालकनाथ रोहतक के अलावा हनुमानगढ़ स्थित अपने आश्रम में भी रहते थे, लेकिन राजस्थान की राजनीति में एक्टिव होने के बाद से ही वो अलवर में रहने लगे।
इस वक्त वह नाथ संप्रदाय के दूसरे सबसे बड़े महंत हैं। नाथ संप्रदाय के मुताबिक गोरखधाम के महंत और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ संप्रदाय के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वहीं, रोहतक की गद्दी पर बैठने वाले बालकनाथ नाथ संप्रदाय के उपाध्यक्ष हैं।
बालकनाथ का विवादों से नाता, कभी बयानों से कभी संपत्ति को लेकर
अलवर की तिजारा विधानसभा सीट से बालकनाथ के खिलाफ कांग्रेस के इमरान खान चुनाव लड़ रहे थे। इमरान खान ने महंत बालकनाथ पर गलत तरीके से विदेश में जमीन खरीदने के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि कनाडा की कल्टस झील के पास 52 करोड़ रुपए में 32 एकड़ जमीन खरीदी है। हालांकि बालकनाथ ने कांग्रेस उम्मीदवार के आरोप को बेबुनियाद बताया है।
जनवरी 2023 में सांसद बालकनाथ ने अलवर के बहरोड़ में पुलिस थाने में घुसकर DSP को धमकी दी थी। इसके बाद पुलिसवाले और सांसद के समर्थक आमने-सामने आ गए थे। BJP कार्यकर्ता को हिरासत में लेने पर विवाद हुआ था।
अलवर की तिजारा विधानसभा सीट से इमरान खान के खिलाफ चुनाव को बालकनाथ ने भारत-पाकिस्तान का मैच बताया था। उन्होंने कहा कि जिस तरह एक-एक रन के लिए खिलाड़ी मेहनत करता है उसी तरीके से आपको एक-एक वोट के लिए मेहनत करनी होगी। मौका लगे तो छक्का जरूर लगाना।
बालकनाथ के राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की कितनी संभावना
राजस्थान में सीएम की रेस में बालकनाथ का नाम दो वजहों से मजबूत माना जा रहा है।
पहला- वो नाथ संप्रदाय परंपरा से आते हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इसी परंपरा से आते हैं। रोहतक में मठ है, हरियाणा, राजस्थान और आसपास के इलाकों में अच्छा प्रभाव माना जाता है। दूसरा- वो हिंदुत्व कार्ड में फिट बैठते हैं। इससे भाजपा के लिए ध्रुवीकरण आसान हो जाएगा। साधु- संत को सीएम बनाने से जनता में पॉजिटिव मैसेज जाता है कि भ्रष्टाचार नहीं होगा।
किरण राजपुरोहित इस बात पर भी जोर देते हैं कि बालकनाथ राजस्थान की पॉलिटिकल तासीर के हिसाब से पूरी तरह फिट नहीं बैठते, इसलिए उनका सीएम बनना मुश्किल लगता है। साथ ही वसुंधरा के प्रति बालकनाथ का सॉफ्ट कॉर्नर माना जाता है। जनसभा में कह भी चुके हैं कि वसुंधरा सीएम बनेंगी।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं कि राजस्थान में बीजेपी को जिस तरह से मैन्डेट मिला है, उससे नई लीडरशिप को सीएम पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर राजस्थान में बालकनाथ को CM बनाया जा सकता है, ताकि 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका लाभ मिले।
हालांकि रशीद ये भी मानते हैं कि वसुंधरा की वजह से बालकनाथ को सीएम बनाना इतना आसान भी नहीं होगा। 35 से ज्यादा विधायक वसुंधरा के करीबी हैं, जो किसी दूसरे को आसानी से मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं करेंगे।