हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के दौरान आरती करने का महत्व है. आरती पूजा के आखिर में की जाती है और इसके बाद ही पूजा संपन्न और सफल मानी जाती है. लेकिन दुर्गा पूजा या शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना से लेकर नवमी तिथि तक पूरे नौ दिनों में सुबह-शाम मातारानी की पूजा में आरती करने का महत्व होता है.
देवी दुर्गा की पूजा में यदि संध्या आरती नहीं होती है तो पूजा अपूर्ण मानी जाती है और पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं होता. बता दें कि इस साल दुर्गा पूजा सोमवार 26 सितंबर 2022 से शुरू हो रही है, जोकि बुधवार 05 अक्टूबर को समाप्त होगी. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं नवरात्रि में क्या है संध्या आरती का महत्व.
पूजा में क्यों की जाती है आरती
आमतौर पर कई लोग पूजा के मंत्र या स्तोत्र आदि का उच्चारण नहीं कर पाते या पूजा की संपूर्ण विधि नहीं जानते, इसलिए पूजा में आरती करना जरूरी होता है. आरती सरल और सहज भी होती है और इससे पूजा सफल मानी जाती है. दुर्गा पूजा के सभी बड़े पंडालों में संध्या आरती की बहुत विशेषता है. संध्या आरती में मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है. इस समय भी मां को भोग लगाकर भक्तों के बीच बांटा जाता है.संध्या आरती का महत्व
हालांकि संध्या आरती भी नियमित की जाने वाली आरती के समान ही होती है, लेकिन दुर्गा पूजा में इस आरती को खास तरीके से किया जाता है. मां दुर्गा के समक्ष ज्योति जलाई जाती है और इसके बाद उनका श्रृंगार किया जाता है. पूजा पंडालों में मां दुर्गा को वस्त्र, फल, फूल, मेवा और गहने आदि अर्पित करने के बाद संगीत, शंख, ढोल, नगाड़ों, घंटियां और नाच-गाने के साथ संध्या आरती की जाती है.इसके साथ ही धुनुची नाच करके मां को प्रसन्न किया जाता है.
नवरात्रि के नौ दिनों में नवदुर्गा की पूजा होती है, इसलिए जिस दिन जिस देवी की पूजा होती है, उस दिन उसी देवी से संबंधित संध्या आरती की जाती है. अन्य दिनों की अपेक्षा होने वाली आरती से दुर्गा पूजा की संध्या आरती का विशेष महत्व होता है.