आखिर टैलेंटेड युवा देश छोड़ कर क्यो जा रहे है इस विषय पर बारीकी से अध्ययन करने की जरूरत है ।।
नई दिल्ली – एक मध्यम व निन्म मध्यम वर्गीय बच्चा दिन रात पढ़ाई इसीलिए करता है जिससे वो देश की प्रतिष्ठित परीक्षाओ में बैठ कर लाखो लोगो की भीड़ में खुद को साबित करके चयन प्राप्त कर सके , इस दौर से गुजरने के दरम्यान उसके माता पिता चाचा फूफा जहां उस बच्चे की हौसला अफजाई करते है वही पढ़ाई के लिये अपनी औकात से ज्यादा संसाधन उपलब्ध कराते है और जब वही बच्चा सेलेक्ट होता है तो पूरे गाँव मे पूरे मोहल्ले में पूरे शहर में उस बच्चे का उदाहरण दिया जाता है कि देखो फलाने का बेटा दिन रात मेहनत करता था और आज उसकी सरकारी नौकरी लग गयी , जहाँ ऐसी चीजें माँ बाप के कंधे को चौड़ा करती थी तथा समाज मे उनकी इज्जत को बढ़ाती थी और ये बच्चे उन तमाम लोगो के लिए प्रेरणास्त्रोत होते थे कि मेहनत पढ़ाई कभी बेकार नही जाती ।।
वर्तमान परिदृश्य में सरकारी नौकरी को ऐसे बया किया जाता है जैसे देश के सारे नाकाबिल लोग ही सरकारी नौकरी कर रहे है , जो काम ये लाखो में से चुनकर आये है वो नही कर पा रहे है तो ठेके पर रखने वाले कर पाएंगे ।।
आप बैंको में ही प्राइवेट बैंक और निजी बैंक को देख लीजिए , कुछ लोग कहेंगे कि प्राइवेट बैंक में सर्विसेज बहुत अच्छी होती है पर कोई कारण और असल सवाल पर नही आता जैसे
क्या मैनपावर सरकारी और प्राइवेट बैंक में बराबर है
क्या कनेक्टिविटी मशीनरी नेटवर्क न होने पर शॉर्टेज स्टाफ जिम्मेदार है , यदि इन्ही सरकारी बैंकों को प्राइवेट खरीद लेता है तो सबसे पहले वो इन बैंकों में स्टाफ भर्ती करेगा क्योंकि उसी से बिज़नेस बढ़ेगा तो आप जब तक सरकारी है क्यो नही स्टाफ बढ़ाते है ,
इसी प्रकार से सरकारी स्कूलों में भी यही निजी लोग चल रहा है पर क्या आपको पता है कि सरकारी टीचर्स को अपने घर के बगल में नौकरी नही मिलती बल्कि कुछ लोगो का 400 500 km या कुछ लोगो का रोजाना एक तरफ का 80 KM तक का सफर तय करना होता है , एक अध्यापक से आप पढ़ाई के अलावा तमाम बाबू वाले काम कराते है , आखिर अध्यापक कब पढ़ायेगा जब पूरे स्कूल में 2 या 3 टीचर हो और सभी बाबू वाले काम मातहतों को तुरंत चाहिए होता है ।।
क्या जिन निजी लोगो को रखने की बात हो रही है आखिर वो किस स्तर से परीक्षा पास करके आये लोगो से उच्चतर साबित होंगे , क्या इस तरह से समाज का विकास हो पायेगा , क्या अब कोई बच्चा पढ़ाई लिखाई करके संसाधनों की कमी पर भी बेस्ट देने के बावजूद ये सुनना चाहेगा कि सरकारी कर्मचारी काम नही कर पाते इसलिए अब निजी या ठेके पर लोग रखे जाएंगे ।। क्या किसी भी सेक्टर में ठेके वाली परंपरा सार्थक सिद्द हुई है क्या ये सिस्टम अब बच्चो को पढ़ाई लिखाई से दूर करेगा क्योकि उनकी नजर में जवानी में फेसबुक पर रील्स बनाओ और उसके बाद ठेके की नौकरी आराम से पाओ और उन लोगों से ज्यादा इज्जत पाओ जिन्होंने अपना बचपन जवानी सब किताबो में झोंक दी थी ।। शायद इसी वजह से आज का युवा यदि मौका मिल रहा है तो विदेश निकल जा रहा है क्योंकि यहाँ टैलेंट हुनर से ज्यादा वोटबैंक राजनीति हावी है ।। क्योंकि ये सिस्टम राजा के बेटे को ही राजा बनाएगी न कि जिसमे हुनर प्रतिभा होगा उसे मौका देगी ।।