गन्ने के प्रमुख रोग एवं उनके एकीकृत रोग प्रबंधन, इस लेख में पढ़िए पूरी जानकारी
गन्ना एक लम्बी अवधि तथा वानस्पतिक प्रजनन द्वारा उगाई जाने वाली फसल है.गन्ने का हरियाणा में प्रमुख फसलों में स्थान है. गन्ना भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसल है. कपड़ा के बाद दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग के लिए कच्चा माल में चीनी उद्योग एक है.ग्रामीण क्षेत्र में सीधे और इसके माध्यम से बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने में सहायक है.
गन्ने के रोग पूरे विश्व में फसल उत्पादन के लिए बाधक हैऔर कोई भी देश पौधों के रोगजनकों प्रभावों के प्रति प्रतिरक्षित नहीं है. रोग प्रतिरोधी किस्मों के लिए प्रजनन के सभी प्रयासों के बावजूद, यह फसल कई बीमारियों से ग्रस्त हो रही है. बीमारी की घटना खतरनाक दर से बढ़ रही है
और हर साल उपज गिर रही है लगभग 10-15% राष्ट्रों में पैदा होने वाली चीनी लाल सड़न, गलन, विल्ट और बसी हुई सड़न के कारण होने वाली बीमारियों के कारण खो जाती है. लीफ स्कैल्ड रोग (एलएसडी) और रटून स्टंटिंग रोग (आरएसडी) जैसे जीवाणु रोग कुछ क्षेत्रों में काफी उपज हानि का कारण बनते हैं. वायरल रोगों के बीच मोज़ेक सभी राज्यों में प्रचलित है, लेकिन इसकी गंभीरता विशिष्ट स्थितियों में महसूस की जाती है. इनके अलावा, घास की शूटिंग के कारण फाइटोप्लाज्मा भी एक संभावित बीमारी है, जो गन्ना उत्पादन को काफी नुकसान पहुंचा सकती है. इसके अलावा, नए रिकॉर्ड किए गए पीले पत्तों की बीमारी (YLD) कई स्थानों पर एक बड़ी बाधा बन गई है.
लाल सड़न रोग (रेड रॉट)
गन्ने में यह रोग कोलेटोट्रिचम फाल्कटम नामक फफूंद से होता है. लाल सड़न रोग देश में सबसे घातक गन्ना रोगों में से एक है और यह भारत और दक्षिण एशिया में पिछले 100 वर्षों से गन्ना उत्पादन में बाधा है. यह रोग पहले के दशकों में भारत में कई व्यावसायिक किस्मों के उन्मूलन के लिए जिम्मेदार था. यह रोग हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में तथा देश के लगभग सभी हिस्सों में महत्वपूर्ण व्यावसायिक किस्मों की विफलता में शामिल रहा है. वर्तमान में यह रोग कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों को छोड़कर भारत के सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में अलग-अलग तीव्रता से फैल रहा है. हरियाणा राज्य का पूर्वी भाग लाल सड़न से अधिक प्रभावित हैं, जबकि पश्चिमी भाग में यह रोग अपेक्षाकृत कम है.
लक्षण
यह रोग पौधे के ऊपरी सिरे से शुरू होता है रेड रॉट बीमारी में तने के अन्दर लाल रंग के साथ सफेद धब्बे के जैसे दिखते हैं. धीरे धीरे पूरा पौधा सूख जाता है. पत्तियों पर लाल रंग के छोटे-छोटे धब्बे दिखायी देते हैं, पत्ती के दोनों तरफ लाल रंग दिखायी देता है. गन्ने को तोड़ेंगे तो आसानी से टूट जाएगा और चीरने पर एल्कोहल जैसी महक आती है.
कंडुआ रोग (स्मट)
गन्ने में यह रोग यूस्टिलागो स्किटामाइनिया नामक फफूंद से होता है. स्मट घातक गन्ना रोगों में शामिल है और यह लगभग सभी गन्ना उत्पादक देशों में एक समय में महत्वपूर्ण रहा है. यह रोग हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तीव्रता से फैल है. स्मट के कारण उपज का नुकसान 50 प्रतिशत तक हो सकता है.
लक्षण
इस रोग के प्रथम लक्षण मई या जून माह में दिख्ते हैं प्रभावित पौधे की गोब से चाबुक समान सरंचना जो सफेद पतली झिल्ली द्वारा ढकी होती है. यह झिल्ली हवा के झोको द्वारा फैल जाती हैतथा काले- काले बीजाणु बुकर जाते हैं और आसपास के पौधों में सक्रम फैलता हैं रोगी पौधों की पतिया छोटी, पतली, नुकीली तथा गन्ने लम्बे एवं पतले हो जाते हैं
उखेड़ा या उकठा रोग (विल्ट)
यह रोग गन्ने में फ्यूजेरियम नामक फफूंद से होता है. उत्तर भारत में इस रोग का प्रकोप भड़ता ही जा रहा है. यह रोग मृदा तथा बीज जनित हैं अथवा प्रसार होता है. इस रोग की अनुकूल परिस्तिथिया सूखा, जल भराव हैं और इनकी वजह से सक्रमण बढ़ता हैं
लक्षण
इस रोग के लक्षण मानसून के बाद दिख्ते हैं पौधे के ऊपरी भाग में पीला पन आ जाता है. पौधे के ऊपरी भाग में पीला पन आ जाता हैं रोगी पौधे का विकास रुक जाता है व पोरिया सिकुड़ जाती है. गन्ने को चाकू से काटने से उनके भीतर गहरा लाल रंग दिखाई देता हैं और गन्ने में एलकोहल जैसी गंद का उत्सर्जन होता है और पूरा गन्ना सूख जाता है.
घसैला रोग (ग्रासी सूट)
गन्ने यह रोग में ग्रासी शूट फाइटोप्लाज्मा से होता है यह रोग देश के सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में होता है. इसे गन्ने का नया क्लोरोटिक एल्बिनो और पीलापन रोग के रूप में भी जाना जाता है. हरियाणा के लगभग सभी मिल जोन क्षेत्रों में विभिन्न किस्मों पर यह रोग मिलता है.