राजधानी में बढ़ रहा नशे का व्यापार , बच्चे बन रहे नसे के शिकार… पढिए ये विषेस खबर।

भोपाल – युवाओं को कूल दिखने की बीमारी जकड़ रही है। कूल कल्चर का हिस्सा बनने के लिए कम उम्र के युवाओं में गलत शौक का नशा सिर चढकऱ बोल रहा है।

कुछ शॉ ऑफ करने के लिए तो कुछ दूसरों को देखकर नशे की तरफ बढ़ रहे हैं। अधिकतर मामलों में माता-पिता बच्चों की इस लत से अनजान हैं। लेकिन पिछले 6 महीनों में ही सिटी चाइल्डलाइन में अपने बच्चे की नशे की लत से परेशान 47 पेरेंट््स ने संपर्क किया। ज्यादातर केसेस में सामने आया है कि जिन बच्चों के पास पैसों की कमी नहीं होती वे हुक्का लाउंज जाते हैं वहीं आर्थिक तंगी वाले बच्चे सस्ते नशे जैसे सिलोचन, थिनर आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं।

12 साल के बच्चों में फोबिया

हाल ही में नेहरू नगर निवासी एक पिता ने चाइल्डलाइन में कॉल कर रात में 10 बजे अपनी 17 साल की लडक़ी को घर से ले जाने की गुहार लगाई। लडक़ी हर दिन 8 से 10 बीड़ी पी रही थी। बीड़ी पीने के लिए जमा किए पैसे अचानक खो गए तो उसने घर में कोहराम मचा दिया। मां शिक्षिका हैं जबकि भाई लॉयर है। चाइल्डलाइन की कांउसलर अनिता ने बताया कि ऐसे बच्चे जिद्दी और गुस्सैल हो रहे हैं। ये फोबिया 12 से ऊपर के बच्चों में ज्यादा बढ़ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं।

केस-1

15 साल का लडक़ा पार्क में बड़े बच्चों के साथ खेलने लगा तो उन्होंने अपने साथ उसे भी नशे की लत लगवा दी। इससे प्रभावित होकर एक और बच्चे ने नशा लेना शुरू कर दिया। ऐसे में दोस्तों की एक चेन बन गई। स्कूल में पकड़े गए तो खुलासा हुआ। बच्चों ने बताया कि बड़े भैया-दीदी करते हैं तो हमें भी नशा करवाते हैं। इल्डलाइन में आने वाले ऐसे मामलों में बच्चों के साथ पेरेंट््स की भी कांउसङ्क्षलग करते हैं।

केस-2

गरीबी के चलते मंगलवारा में रहने वाला एक परिवार दोनों बेटियों को भी काम करने भेज रहा था। लेकिन काम के बाद 6-8 घंटों तक भी वे नहीं लौट रही थीं। पड़ताल पर पता चला कि दोनों पैसे कमाकर हुक्का लॉउंज में बैठती थीं। पैसे कम पडऩे पर कई बार ऑनलाइन दोस्त बनाकर उनसे भी पैसे लिए।

बच्चों से बातचीत के लिए माता-पिता निकालें समय

बच्चों के साथ समय बिताएं। सिर्फ उनकी जरूरतें पूरी करने पर ही ध्यान नहीं दें। 10 साल की उम्र के बाद बच्चों में हार्मोनल बदलाव होते हैं, ऐसे में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे कई बच्चे आते हैं जो कहते हैं कि हमें आपसे बात करनी है क्योंकि मम्मी-पापा के पास हमारे लिए टाइम नहीं है। पेरेंट््स को ये एटिट््यूड बदलना होगा।

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