लोहगाजर गांव में सात दिवसीय श्री मद्भभागवत कथा का हुआ आयोजन
लोहगाजर गांव में सात दिवसीय श्री मद्भभागवत कथा का हुआ आयोजन
रिपोर्ट–मनोज कुमार सिंह
जलालपुर — क्षेत्र के लोहगाजर गांव में सात दिवसीय श्री मद्भभागवत कथा का आयोजन बिश्वम्भर सिंह उर्फ बनारसी सिंह ने अपने भाई विनय सिंह व रणंजय सिंह के सहयोग से अपने आवास पर किया।
प्रवचन कर्ता पंडित विद्या नन्द जी महाराज ने श्रोताओं को कथा के तीसरे दिन श्री मद्भभागवत कथा रूपी अमृत का रसपान कराते हुए नारायण के महान भक्त ध्रुव की कहानी सुनाते हुए कहा कि राजा उत्तानपाद ने दो विवाह किया था पहले औरत का नाम सुनीति और दूसरी का नाम सुरुचि था। राजा अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि से बहुत अधिक प्रेम करते थे
लंबे समय से ध्यान न दिए जाने के कारण बड़ी पत्नी सुनीति अपने बेटे ध्रुव के साथ महल के बाहर रहती थी। वही सुरुची के बेटे उत्तम को सभी शाही सुविधा प्राप्त थी । जो सुनीति और ध्रुव को नहीं दी गई थी । ध्रुव को शाही व्यवहार की उतनी परवाह नहीं थी जितनी उसे पिता के प्यार की थी ।एक दिन जब उसने राजा को छोटे बेटे उत्तम के साथ खेलते देखा तो ध्रुव ने भी उसकी गोद में बैठकर खेलने की जिद की ।
लेकिन सुरुचि को नाराज करने के डर से राजा ने ध्रुव को अपनी गोद में बैठने से मना कर दिया तभी सुरुचि वहां पहुंची और ध्रुव का मजाक उड़ाई उसने कहा कि अगर ध्रुव का जन्म सुनिती से नहीं बल्कि सुरुचि से होता तो उसे राजा द्वारा पुत्र की तरह प्यार मिलता । सुरुचि ने ध्रुव का उपहास उड़ाते हुए बोली कि वह भगवान विष्णु की पूजा करें जो उसे सुनिती के बजाय सुरुचि के पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद देंगे ऐसा होने पर ही ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठ पाएगा। अपनी मां की सलाह से प्रेरित होकर ध्रुव भगवान नारायण को तपस्या द्वारा प्रसन्न करने के लिए दृढ़ निश्चय के साथ तुरंत निकल पड़ा । एकांत की तलाश में उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई ध्रुव ने तुरंत उनका आदर पूर्वक अभिवादन किया जवाब में नारद ने उनके सर को सहलाया और ध्रुव के विरुद्ध संकल्प की परीक्षा लेने का फैसला किया। ध्रुव को घर वापस लौटने के लिए नारद मुनि ने हर संभव कोशिश किया लेकिन ध्रुव के दृढ़ संकल्प को हिला नहीं पाए तब उन्होंने ध्रुव को भगवान नारायण के स्वरूप के बारे में बताया और उसे एक मंत्र दिया । गुरु के रूप में अपना कार्य करने के बाद नारद ध्रुव को आशीर्वाद देकर अंतर ध्यान हो गये ।
उसके बाद ध्रुव मधुबन पहुंचे और पवित्र नदी यमुना के तट पर एक कदम्ब वृक्ष के नीचे बैठकर अपनी तपस्या शुरू कर दिया । चौथे महीने के बाद ध्रुव ने अपने ध्यान के दौरान सांस लेना बंद कर दिया और एक पैर पर खड़े होकर ध्रुव ने अपना सारा ध्यान भगवान नारायण पर केंद्रित कर दिया। जब ध्रुव सांस लेना बंद कर दिया और ब्रह्मावेश पर ब्रह्म में प्रवेश किया तो दुनिया और देवताओं में डर व्याप्त हो गया। उसके बाद स्वयं नारायण को अपने सामने आते देख ध्रुव खुश हो गया और फूट-फूट कर रोने लगा। भगवान ने ध्रुव की गाल को छूकर उसे सान्त्वना दी । ध्रुव की भक्ति और विश्वास प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने उसे आशीर्वाद दिया और उसकी सभी इच्छाएं पूरी होगी और अपने राज्य पर शासन करने के बाद वह सप्त ऋषियों से ऊपर भगवान नारायण के पास जा सकेगा ऐसा आशीर्वाद भगवान ने ध्रुव को दिया ।और आशिर्वाद देकर नारायण अन्तर्ध्यान हो गये ।
इस कथा में पूर्व विधायक डा हरेन्द्र प्रसाद सिंह, जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि आमोद सिंह, त्रिभुवन दूबे, यदुनाथ दूबे, जयप्रकाश सिंह, रामसूरत सिंह, तहसीलदार सिंह मास्टर, भानू सिंह, डा श्रीप्रकाश सिंह, रामप्रकाश सिंह, दिनेश सिंह , शनि सिंह ,अमूल सिंह आदि सैकड़ों लोग मौजूद रहकर कथा का रसपान किए ।