1857 की शहादत की अमर गाथा: जौनपुर के हौज गांव का शहीद पार्क बना देशभक्ति का प्रतीक

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1857 की शहादत की अमर गाथा: जौनपुर के हौज गांव का शहीद पार्क बना देशभक्ति का प्रतीक
जौनपुर, सिरकोनी।
1857 की पहली आजादी की लड़ाई भले ही देशभर में बड़े पैमाने पर लड़ी गई हो, लेकिन जौनपुर के हौज गांव की वीरगाथा एक अलग ही शौर्य गाथा है। इस गांव के 16 वीर सपूतों ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी थी। आज भी सिरकोनी विकासखंड स्थित यह गांव अपने शहीद पार्क के जरिए उन बलिदानों की याद ताजा करता है जो आज़ादी के लिए दिए गए थे।
1857 की क्रांति में हौज गांव की अहम भूमिका
हौज गांव के वीरों ने वर्ष 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था। 5 जून 1857 को जब अंग्रेज अधिकारी विलवूड अपने सैनिक साथियों के साथ वाराणसी से जौनपुर जा रहा था, तो हौज गांव के वीर योद्धा बाल दत्त ने अपने 100 साथियों के साथ मिलकर सिरकोनी क्षेत्र के चकताड़िया गांव के पास अंग्रेजों को घेर लिया। भीषण संघर्ष में सभी अंग्रेजों की हत्या कर दी गई। बाल दत्त ने विलवूड को उसकी ही बंदूक से गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।
इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इस कृत्य को विद्रोह मानते हुए बदले की कार्रवाई की। मुकदमा चलाकर 15 स्वतंत्रता सेनानियों को गांव के ही महुआ के पेड़ पर सरेआम फांसी दी गई और एक सेनानी बाल दत्त को 13 फरवरी 1860 को “काले पानी की सजा” दी गई।
फांसी पाए वीर क्रांतिकारी
शहीद हुए 15 वीरों के नाम इस प्रकार हैं:
- सुक्खी पुत्र इंद्ररमन
- परसन पुत्र बदलू
- मान पुत्र धानू
- रामेश्वर पुत्र दीना
- रामदीन पुत्र रोचन
- सुखलाल पुत्र नरायन
- इंद्ररमन पुत्र धन्नू
- शिवदिन पुत्र धतुरी
- बरन पुत्र बाल दत्त
- ठकुरी पुत्र बुद्धू
- बाबर पुत्र सीता
- सुक्खू पुत्र पवारू
- मातादीन पुत्र वरियार
- शिवपाल पुत्र वरियार
- गोवर्धन पुत्र बाल दत्त
जबकि बाल दत्त को अंडमान की कालापानी की सजा सुनाई गई, जहां उन्होंने शेष जीवन देश के नाम कर दिया।
शहीद स्मारक: एक प्रेरणा स्थल
वर्ष 1987 में तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह और नेता माता प्रसाद की पहल पर गांव में शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। यही स्मारक आज “हौज गांव का शहीद पार्क” के नाम से जाना जाता है। यहां हर साल:
- 15 अगस्त को “शहीद मेला”
- 17 सितंबर को “शहीद सम्मान दिवस”
धूमधाम से मनाया जाता है।
गर्व से सर ऊंचा करता है हौज गांव
जौनपुर मुख्यालय से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव अब मामूली नहीं रहा। शहीद पार्क गांव की पहचान बन चुका है और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। यहां आने वाला हर व्यक्ति उस बलिदान को महसूस करता है, जिसने आज़ादी की नींव रखी।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कैसे एक समय में हौज के लोगों ने अंग्रेजों को “नाको चने चबवाने” पर मजबूर कर दिया था। इस बलिदान की गूंज इतिहास के पन्नों में दर्ज है और आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाती है कि स्वतंत्रता केवल एक उपहार नहीं, बल्कि शहीदों के लहू से सींची गई विरासत है।
आज भी यह पार्क एक संदेश देता है — “वो मरे नहीं, अमर हो गए।”