उत्तर प्रदेश – मेदांता सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल में हुआ यूपी का पहला पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट 

प्रयागराज का रहने वाला 9 साल का तेजस सिंह हेपेटाइटिस ए वायरस के कारण एक्यूट लिवर फेलियर से पीड़ित था। वह 3 दिन सहारा अस्पताल में भर्ती था, जहां वह बेहद गंभीर हालत में था और वहां वो मेडिकल ट्रीटमेंट को रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा था। जिसके बाद वहां से उसे मेदांता अस्पताल में रेफर कर दिया गया। मेदांता में आने के 12 घंटे के अंदर डोनर और मरीज की जांचें की गईं और उसके बाद प्रत्यारोपण का कार्य शुरू किया गया और डोनर का 40 प्रतिशत बायां लिवर लोब लिया गया। जिसके 2 सप्ताह बाद बच्चे हालत में सुधार होने पर उसे छुट्टी दे दी गई। आज दो महीने बाद वो बिल्कुल स्वस्थ है और एक सामान्य लड़के की तरह जीवन जी रहा है।

 

मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. ए.एस. सोइन और उनके सर्जन्स की टीम, डॉ. अमित रस्तोगी, डॉ. प्रशांत भंगुई, डॉ. रोहन जगत चौधरी, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम मोहन, डॉ. दुर्गाप्रसाद द्वारा लीवर प्रत्यारोपण किया गया। साथ ही इस केस में एनेस्थेटिस्ट, डॉ. विजय वोहरा और डॉ. सी.के. पांडे का भी योगदान रहा।

 

डॉ. ए.एस. सोइन ने कहा पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट बहुत चुनौतीपूर्ण है। बच्चों के धमनी, पोर्टल वेन और पित्त नलिकाओं के छोटे होने के कारण यह तकनीकी रूप से कठिन है। 450 से अधिक पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट के हमारे अनुभव और भारत की सबसे बड़ी श्रृंखला में से एक मेदांता अस्पताल लखनऊ में यह सुविधा प्रदान करके खुश हैं। जैसे ही हमने तेजस की स्थिति की जांच की हमने उसके लिए लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी। तेजस के पिता ने अपने रिश्तेदारों की मदद से जल्दी से सभी व्यवस्थाएं की। इस केस में तेजस की मां डोनर थीं और उन्होंने अपने लिवर का बायां हिस्सा दान कर दिया जो लगभग 40 प्रतिशत था। सर्जरी के दौरान तेजस के रोगग्रस्त लीवर को हटा दिया गया और उसकी मां के लीवर का एक हिस्सा उसमें प्रत्यारोपित कर दिया गया।’

 

कंसल्टेंट हेपेटोबिलरी और लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. रोहन चौधरी ने कहा, तेजस का केस बेहद जटिल था क्योंकि लिवर ट्रांसप्लांट का समय बहुत महत्वपूर्ण था और सर्जरी में किसी भी तरह की देरी होने से उसके परिणाम काफी बुरे हो सकते थे। 26 अप्रैल 2022 को बच्चे को पीलिया, हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी और हाई आईएनआर के साथ अस्पताल में लाया गया था। एक्यूट लिवर फेलियर होने की वजह से मरीज में सेरेब्रल एडिमा (मस्तिष्क में सूजन) भी बढ़ रही थी। उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी और अगर ट्रांसप्लांट नहीं किया गया होता तो वह कोमा में चला जाता। 27 अप्रैल 2022 को लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट विधि से बच्चे का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया। इसी के कुछ दिनों बाद 17 मई 2022 को हमने बच्चे का 9वां जन्मदिन मनाया और जिससे बच्चा काफी खुश हुआ।

 

सीनियर पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. दुर्गाप्रसाद ने कहा, ‘बच्चों के लिवर ट्रांसप्लांट के मामले चुनौतीपूर्ण होते हैं क्योंकि शरीर के वजन के अनुसार उनको दवाओं की खुराक देना होता है साथ ही उन्हें संक्रमण के भी बहुत खतरे होते हैं। हेपेटाइटिस ए वायरस (एचएवी) संक्रमण के कारण तेजस का लिवर फेल हो गया था। बच्चों में एचएवी संक्रमण आम बात है लेकिन उनमें से लगभग 2 प्रतिशत एक्यूट लिवर फेलियर केस में प्रोग्रेस होती है। हालांकि कुछ एक्यूट लिवर फेलियर ठीक हो जाते हैं, जबकि अन्य को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है अन्यथा मरीज की मृत्यु हो जाती है। इस केस में तेजस को एएलएफ हुआ था और वह एएलएफ के किंग कॉलेज के मानदंडों को पूरा करता था, जिससे कारण उसे तत्काल लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत थी।’

 

डॉ. रोहन चौधरी ने आगे कहा, ‘ऑपरेशन के बाद तेजस के इम्यूनिटी सिस्टम को कमजोर करने के लिए इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाएं दी गईं ताकि उसका शरीर उसके अंदर अपनी मां के लिवर को रिजेक्ट न करे। हालांकि इम्युनिटी सिस्टम कमजोर होने के कारण संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है जैसे कि उसे 1 साल तक कच्ची सब्जियां या बाहर का खाना खाने की अनुमति नहीं है, धूल में नहीं खेलना है और भीड़ भाड़ वाली जगहों से दूर रहना है व हमेशा मास्क पहनना है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सब कुछ ठीक है, हम नियमित रूप से तेजस के लिवर फंक्शन टेस्ट की भी समीक्षा कर रहे हैं।’

 

तेजस के पिता ने कहा, ‘शुरुआत में हम लिवर ट्रांसप्लांट की खबर से डर गए थे, लेकिन जब हम डॉ ए.एस. सोइन से मिले तब हमें भरोसा हुआ और बच्चे के ठीक होने की आशा भी नजर आने लगी और तेजस के जीवन को बचाने के लिए जो कुछ भी करना था उसे हमने किया। हमारा ट्रांसप्लांट का निर्णय सही साबित हुआ है और हमें बहुत खुशी होती है जब हम तेजस को गले लगाते हैं। वहीं जब उसकी मां अस्पताल के अपने दिनों को याद करती है तो उसके लिए आज भी अपने आँसू रोकना मुश्किल होता है।’

 

तेजस ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा, ‘मैं खूब पढ़ाई करूंगा। साथ ही उसने अपनी सपने बताते हुए कहा कि मैं भारतीय क्रिकेट टीम में ऑलराउंडर बनना चाहता हूं।’

 

पीडियाट्रिक हेपेटोलॉजी की निदेशक डॉ. नीलम मोहन ने कहा कि बच्चों में एक्यूट लिवर फेलियर के लिए लिवर ट्रांसप्लांटेशन में हमारा वृहद अनुभव है। अगर ट्रांसप्लांट सही समय पर किया जाए तो इसके परिणाम चमत्कारी होते हैं। दुर्भाग्य से एक्यूट लिवर फेलियर के सभी बच्चे समय पर ट्रांसप्लांट सेंटर तक नहीं पहुंच पाते हैं या अभिभावक लिवर ट्रांसप्लांट तकनीक से अनजान होते हैं। हमारे पास पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट रेसिपीयंट सर्वाइवर बड़ी संख्या में है जो हमारे पास लंबे समय से फॉलोअप के लिए आ रहे हैं और सामान्य जीवन भी जी रहे हैं। इनमें से अधिकतर ट्रांसप्लांट हो चुके बच्चे पांच साल या 10 साल के समय को पार कर चुके हैं।

 

ट्रांसप्लांट के बाद के जीवन के सवालों के जवाब देते हुए डॉ ए.एस. सोइन ने कहा, “तेजस की तरह ऑपरेशन के बाद अगर बच्चा अच्छे से रिकवर कर रहा है तो ऐसे प्रत्यारोपण को पूरी तरह से सफल माना जाता है और आगे उसके एक सामान्य जीवन जीने की आशा भी बढ़ जाती है। साथ ही समय पर दवाएं लेने और नियमित ब्लड टेस्ट कराने जैसी कुछ चीजों को छोड़कर, इनका जीवन बिल्कुल सामान्य होता है।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Breaking News

Translate »
error: Content is protected !!
Coronavirus Update