जानिए अभेद्य दुर्ग की अद्भुत कहानी राजा : नरपत सिंह के नाम से कांपते थे अंग्रेज,

बीजेपी जिला अध्यक्ष सौरव मिश्रा ने बताया कि राजा नरपत सिंह की वीर गाथा हरदोई के लोगों को अंग्रेजों

 अब विरुद्ध हुए युद्ध की याद दिलाती है. उन्होंने कहा कि यह इस बात की भी गवाह है कि उस समय अंग्रेजों को किस तरीके से खदेड़ा गया था.

जानिए उत्तर प्रदेश का हरदोई जिले ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है. यहां ऐसे बलिदानी रहे हैं, जिनके शौर्य और पराक्रम के सामने अंग्रेजों को कई बार हार का सामना करना पड़ा था. हरदोई के माधौगंज कस्बे के पास में एक रुइया गढ़ी नाम का गांव मौजूद है. इस गांव का नाम सुनकर अंग्रेज थरथर कांपते थे.

अबअंग्रेजों ने अवध क्षेत्र में कब्जा करने के बाद में गंगा किनारे के क्षेत्र में कब्जा करने की रणनीति बनाई थी. अंग्रेज सेना अपनी तोपों के साथ गंगा की तलहटी में आगे बढ़ रही थी. इस दौरान नेतृत्व में रूइया गढ़ी की सेना ने अंग्रेजों पर जोरदार तरीके से हमला बोल दिया था. इस लड़ाई में अंग्रेजी सेना को राजा नरपति सिंह के सैनिकों ने भारी क्षति पहुंचाई थी.

हरदोई के सिटी मजिस्ट्रेट डॉ. सदानंद गुप्ता ने बताया कि जिला मुख्यालय से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रुइया गढ़ी अंग्रेजी शिकस्त की कहानी आज भी कह रही है. यहां का दुर्ग देश के लिए गौरव का विषय है.

हरदोई की जमीन पर अंग्रेजों की शिकस्त की कहानी यहीं से शुरू हुई थी. इस दौरान राजा नरपत सिंह और कानपुर के पेशवा ने अंग्रेजों को घुटनों पर ला दिया था. राजा नरपत सिंह ने कहा था कि उनके जिंदा रहते अंग्रेजी हुकूमत हरदोई का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं.

अंग्रेजी फौज को उतारा मौत के घाट

अगर गजेटियर के अनुसार राजा नरपत सिंह ने अंग्रेजों को हरदोई में डेढ़ वर्ष तक घुसने नहीं दिया था. रुइया गढ़ी के सैनिकों ने 4 वर्षों में अंग्रेजों को करारी शिकस्त दी थी. 8 जून 1987 को छापेमार युद्ध के दौरान राजा और उनके सैनिकों ने अंग्रेजी फौज की एक बड़ी टुकड़ी को मल्लावां में मौत के घाट उतार दिया था.

इस दौरान जिले का डिप्टी कमिश्नर डब्लूसी चैपर हरदोई छोड़कर महफूज ठिकाने की तरफ भाग निकला था. उसके जाते ही अंग्रेजी फौज ने फिर से राजा नरपत सिंह पर हमला बोल दिया था और इस बार अंग्रेजों को फिर शिकस्त खानी पड़ी थी.

डेढ़ साल तक चला युद्ध

पहला युद्ध 15 अप्रैल 1858 को दुर्ग पर हुआ था. वहीं दूसरा युद्ध 22 अप्रैल 1858 को सिरसा गांव में हुआ था. 28 अक्टूबर 1858 में रुइया दुर्ग पर तीसरा युद्ध हुआ था और फिर आखिरी युद्ध 9 नवंबर 1858 को मिनौली में हुआ था. इसके बाद में जिले के नवाब और राजाओं ने अंग्रेजों की दासता स्वीकार कर ली थी, लेकिन इसके बाद भी नरपति सिंह के साथ में करीब डेढ़ साल तक युद्ध जारी रहा था. इसके बाद नरपति सिंह शहीद हो गए थे.

राजा नरपति सिंह के अभेद्य दुर्ग की कहानी

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले राजा नरपत सिंह की याद में इस स्थान पर स्मारक बना हुआ है.अब बीजेपी जिला अध्यक्ष सौरव मिश्रा ने बताया कि राजा नरपत सिंह की वीर गाथा हरदोई के लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध हुए युद्ध की याद दिलाती है. उन्होंने कहा कि यह इस बात की भी गवाह है|

उस समय अंग्रेजों को किस तरीके से खदेड़ा गया था. क्योंकि राजा नरपति सिंह का दुर्ग अभेद्य और शौर्य की जीती जागती मिसाल थी, जिसकी कुछ निशानियां आज भी मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि हम इन शहीदों को नमन करते हैं. आज की युवा पीढ़ी को इनके विषय में जानने की जरूरत है. वहीं जिलाधिकारी अविनाश कुमार ने बताया कि समय-समय पर लोगों को इस इतिहास के विषय में जानकारी दी जाती है. यह देश की आजादी से जुड़ा हुआ अद्भुत ऐतिहासिक स्थल है.

 

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