जौनपुर :16 अगस्त 1942 को धनियामऊ पुल तोड़ने वाले हुए थे गोली के शिकार

जौनपुर 16 अगस्त 1942 को धनियामऊ पुल तोड़ने वाले हुए थे गोली के शिकार

जौनपुर : बक्शा विकास खण्ड के धनियामऊ पुल काण्ड में आजादी की लड़ाई के दौरान शहीद हुए अमर सपूतों को ज्यादातर लोग भूल चुके है। जौनपुर लखनऊ राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर स्थित स्तम्भ बीरता की गाथा स्वयं बयां करती है। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान क्षेत्र के अगरौरा, धनियामऊ, हैदरपुर, जंगीपुर, चितौड़ी, मितावा, चौखड़ा, अटरा, मयनंदीपुर, वरचौली, दांदूपुर, खुंशापुर, गैरीकला, अलहदिया, औंका, सरायहरखु, दरियावगंज, आदि गाँवो से आजादी की लड़ाई में कूदने वाले नौजवानों के लिए ट्रेनिंग शिविर का आयोजन किया गया। उक्त शिविर का उद्द्घाटन आचार्य नरेन्द्र द्वारा चितौड़ी में किया गया। पण्डित गौरीशंकर (इटहा), पण्डित पारसनाथ उपाध्याय (भोसिला), डॉ. चन्द्रपाल सिंह की देखरेख में नवयुवकों ने ट्रेनिंग लिया। ट्रेनिंग के दौरान राष्ट्रप्रेम की भावना जागृति हुई। ट्रेनिंग का सम्पूर्ण खर्च रामभरोस सिंह ने उठाया।

अब इन युवकों ने धनियामऊ पुल तोड़ने एवं थाना लूटने की योजना बनायी। तय तिथि पर 16 अगस्त 1942 को बदलापुर थाना लूटने एवं पुल तोड़ने के लिए सैकड़ो नवजवानों का रेला घरों से निकल पड़ा। उधर भनक लगते ही गोरी सेना बदलापुर थाने पर जुट गयी तो नवयुवको का रेला वापस लौट पुल तोड़ने में जुट गयी।

उधर बदलापुर थाना लूटने की सूचना बक्शा पहुँचते ही गारद वहाँ से चल दी। इधर धनियामऊ पुल पर पहुँचते ही पुल टूटते देख अंग्रेज इंस्पेक्टर क्रोधित हो गया। इंस्पेक्टर आक्रोशित युवा नवजवानों की टोली पर गोली चलाने का आदेश दे दिया, आदेश होते ही गोरी सेना के जवान फायर शुरू कर दिए। नवजवानों ने भी गोली का जवाब ईंट पथ्थरों से देना शुरू किया लेकिन गोली के आगे ईंट पत्थर नही टिक सका लिहाजा जो जिधर था उधर ही भागने लगा।

अंग्रेजों की गोली से 16 को चार तो 23 अगस्त को दो लोग हुए थे शहीद

धनियांमऊ पुल तोड़ने के दौरान मात्र 16 वर्ष की उम्र में जमीदार सिंह, रामअधार, रामपदारथ चौहान एवं रामनिहोर कहार मौके पर शहीद हो गये। गोली से रामभरोस की एक भुजा उड़ गयी, भोला की आंख में गोली लगी, बबई मिश्र, छत्रपाल सिंह आदि लोग बुरी तरह घायल हो गये। इस घटना के बाद जिन-जिन गांवों के नवयुवकों की टीम शामिल हुई थी उन गाँवो पर अंग्रेजी पुलिस कहर बनकर टूट पड़ी लोग गाँवो से पलायन कर गये।

गोरीसेना ने घरों में लूटपाट, आगजनी कर सबको तबाह कर दिया। इतनी बड़ी कुर्बानी देने वालो वीर सपूतों की याद में किसी को दो फूल चढ़ाने की भी फुर्सत नही है। 23 अगस्त 1942 को धनियांमऊ पुल घटना में अंग्रेजों सेना के आँख की किरकिरी बने अगरौरा निवासी रामानन्द एवं रघुराई चौहान को पकड़कर चिलबिल के पेड़ पर लटका कर गोली मारी गई थी। इतना ही नही क्रूर अंग्रेजी सेना ने तीन दिनों तक शव न उतारने की हिदायत दी थी।

भाजपा शासनकाल में बना शहीद स्तम्भ

भाजपा शासन काल में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के समय किसी तरह एक शहीद स्तम्भ बना दिया गया कुछ दिनों तक वह भी देखभाल के अभाव में उपेक्षित बना रहा।

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