प. बंगाल में राज्यपाल की जगह अब मुख्यमंत्री ममता होंगी सभी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलपति 182 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में दिया वोट 40 सदस्यों ने विधेयक के खिलाफ किया मतदान

प. बंगाल में राज्यपाल की जगह अब मुख्यमंत्री ममता होंगी सभी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलपति

182 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में दिया वोट

40 सदस्यों ने विधेयक के खिलाफ किया मतदान

पश्चिम बंगाल की विधानसभा ने सोमवार को एक अहम विधेयक पारित कर दिया है. इसके तहत अब राज्यपाल जगदीप धनखड़ की जगह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सभी राज्य संचालित विश्वविद्यालयों की कुलपति होंगी. इसके लिए विधानसभा ने विधेयक पर अपनी मंजूरी दे दी है. अब राज्यपाल धनखड़ का राज्य के संचालित विश्वविद्यालयों पर दखल नहीं रहेगा.

राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने सदन में पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2022 पेश करने के बाद कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चांसलर के रूप में पदभार संभालने में कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री एक केंद्रीय विश्वविद्यालय- विश्व भारती के चांसलर हो सकते हैं तो फिर मुख्यमंत्री राज्य के विश्वविद्यालयों की चांसलर क्यों नहीं हो सकतीं. उन्होंने कहा कि राज्यपाल जो कि वर्तमान चांसलर हैं उन्होंने कई मौकों पर प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है.

294 सदस्यीय विधानसभा में से 182 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में और 40 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया. वहीं विधेयक का विरोध करते हुए भाजपा ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री को चांसलर नियुक्त करने से राज्य की उच्च शिक्षा प्रणाली में सीधे राजनीतिक हस्तक्षेप होगा.

भाजपा के विधायक अग्निमित्र पॉल ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार सब कुछ नियंत्रित करना चाहती है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने का निर्णय राज्य की शिक्षा प्रणाली में सत्तारूढ़ दल के सीधे हस्तक्षेप को सुविधाजनक बनाने के लिए लिया जा रहा है.

इस विधेयक को पारित करने से पहले हाल ही में मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी. इसमें राज्यपाल को निजी विश्वविद्यालयों में विजिटर के पद से हटाने के प्रस्ताव के लिए भी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी.

हाल ही में विश्विद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति को लेकर बंगाल में रस्साकसी की खबरें सामने आई थीं. बंगाल की ममता सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राज्य सरकार की सहमति के बिना कई कुलपतियों की नियुक्ति कर दी. इसलिए राज्यपाल की शक्तियां कम करने के लिए ममता सरकार ने ये बड़ा कदम उठाया है।

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