राहत भरी खबर: अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव में नरमी, लुढ़ककर यहां पहुंच गया दाम, ये रही बड़ी वजह
सोमवार को ब्रेंट क्रूड के भाव में भारी कमी आई है और यह लुढ़ककर 109 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। इससे पहले पिछले दिनों रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते इसका दाम अपने 14 साल के शिखर पर पहुंचकर 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था। हालांकि, बीते हफ्ते में इसमें 5.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
कच्चे तेल के भाव में आई गिरावट।
कच्चे तेल के भाव में आई गिरावट। – फोटो : अमर उजाला
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रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष का सोमवार को 19वां दिन है। इस युद्ध के चलते बीते दिनों कच्चे तेल का भाव अपने 14 साल के शिखर पर पहुंच गया था। लेकिन, सोमवार को इस मोर्चे पर एक राहत भर खबर आई है। दरअसल, ब्रेंट क्रूड के भाव में भारी कमी आई है और यह लुढ़ककर 109 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है।
सोमवार को 109 डॉलर पर पहुंचा भाव
सोमवार को तेल की कीमतें लगभग चार डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं। रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेंट क्रूड वायदा 4.12 डॉलर या 3.6 फीसदी की गिरावट के साथ 108.55 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। जबकि, यूएस वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड फ्यूचर्स 3.93 डॉलर या 3.7 फीसदी की गिरावट के साथ 105.40 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया।
14 साल के शिखर पर था ब्रेंट क्रूड
गौरतलब है कि रूस के 24 फरवरी को यूक्रेन पर आक्रमण शुरू करने के बाद से कच्चे तेल के दामों में आग लगी हुई थी। इसके चलते नए साल में तेजी की बात करें तो बीते साल की तुलना में कच्चे तेल का भाव दो महीने के भीतर ही लगभग 40 फीसदी चढ़ गया था। बीते दिनों लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें अपने 2008 के स्तर पर पहुंच गई थीं। यानी ये 14 साल के शिखर पर 139 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गई थीं।
इसलिए तेल की कीमत में गिरावट
रविवार को अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन ने कहा कि रूस संकेत दिखा रहा है कि वह यूक्रेन पर पर्याप्त बातचीत करने के लिए तैयार हो सकता है। इसका सकारात्मक असर क्रूड ऑयल की कीमतों पर पड़ा है और इसमें कुछ दिनों से नरमी देखने को मिल रही है। हालांकि, मॉस्को वर्तमान में अपने पड़ोसी को नेस्तनाबूद करने की इच्छा पाले हुए है।
नवंबर से बाद सबसे बड़ी कमी
बीते हफ्ते की बात करें तो इस अवधि में अंतररष्ट्रीय स्तर पर ब्रेंट क्रूड के भाव में 4.8 फीसदी की गिरावट आई और यूएस डब्ल्यूटीआई में 5.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके दाम में 30 डॉलर प्रति बैरल की कमी आई है। यह कमी नवंबर के बाद से सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट थी। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों द्वारा रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध की खबरों के चलते विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे तेल के भाव में भले ही कमी आ रही है लेकिन इनका 100 डॉलर के नीचे पहुंचना संभव नहीं लग रहा है।
रूस दूसरा बड़ा तेल उत्पादक
गौरतलब है कि पुतिन के युद्ध की घोषणा के बाद से ही एनर्जी एक्सपोर्ट में व्यवधान की आशंका बढ़ गई थी, जो अब साफतौर पर दिखाई देने लगी है। आपको बता दें कि रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चा तेल बेचता है। यूरोप के देश 20 फीसदी से ज्यादा तेल रूस से ही लेते हैं। इसके अलावा, ग्लोबल उत्पादन में विश्व का 10 फीसदी कॉपर और 10 फीसदी एल्युमीनियम रूस बनाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस संयुक्त रूप से कच्चे और तेल उत्पादों का दुनिया का शीर्ष निर्यातक है, जो प्रति दिन लगभग सात मिलियन बैरल या वैश्विक आपूर्ति का सात फीसदी शिपिंग करता है।
185 डॉलर पर पहुंच सकता है क्रूड ऑयल
हाल ही में आई एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने अनुमान जताया था कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और आगे बढ़ता है तो क्रूड ऑयल के दाम 185 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। यहां आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर का इजाफा होता है तो भारत में पेट्रोल-डीजल का दाम 50 से 60 पैसे बढ़ जाता है। ऐसे में उत्पादन कम होने और सप्लाई में रुकावट के चलते इसके दाम में तेजी आना तय है और उम्मीद है कि कच्चा तेल 150 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंचने से भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 15 से 22 रुपये तक की वृद्धि देखने को मिल सकती है। हालांकि, विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि तेल के दाम में होने वाली ये बढ़ोतरी एक बार में नहीं, थोड़ी-थोड़ी करके कई दिनों में की जा सकती है।
भारत पर दिखाई देगा बड़ा असर
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव आसमान पर है। कच्चे तेल की कीमतों के इजाफे के बाद भी देश में पेट्रोल और डीजल के दाम बीते चार महीने से ज्यादा समय से यथावत बने हुए हैं। ऐसे में तेल कंपनियों को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है। हाल ही में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में घरेलू तेल कंपनियों के बढ़ रहे घाटे पर कहा है कि पिछले दो महीनों में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ने के कारण सरकार के स्वामित्व वाले खुदरा तेल विक्रेताओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा रहा है और अब कंपनियां इसे कम करने के लिए देश की जनता पर बोझ डालने की तैयारी कर रही हैं।
85 फीसदी कच्चे तेल का आयात
गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है और यह अपनी जरूरत का 85 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदते हैं। आयात किए जा रहे कच्चे तेल की कीमत भारत को अमेरिकी डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम प्रभावित होते हैं यानी ईंधन महंगे होने लगते हैं। अगर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो जाहिर है भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि भारत का आयात बिल 600 अरब डॉलर पार पहुंच सकता है।