आज दुनिया में कारोबार बाल्टी हाथ ;में लटकाकर दिल्ली में बेचते थे भुजिया,
भारत के 75 सालों में बदलाव की कहानी की जब भी बात होगी तो भारतीय इकॉनमी के बदले स्वरूप
डिजिटल भारत ने किस तरह इस सफर को छुआ इस कड़ी 85 साल के केदारनाथ अग्रवाल 55 साल पहले बीकानेर से जब दिल्ली आए तो बाल्टी हाथों में लटकाकर भुजिया और रसगुल्ले बेचने शुरुआत की और कारोबार की जड़ें जमाईं। उनके बच्चों ने पापा को हाथ से दूध जमाते देखा लेकिन जब तक वो बड़े हुए तो कारोबार में मशीनें आ गई थीं, फ्रेंचाइजी स्टोर खुलने लगे |
तीसरी पीढ़ी ने विदेश से पढ़ाई कर बिजनेस को सॉफ्टवेयर पर डाला तो अब केदारनाथ के पड़पोते डिजिटल राह पर चल रहे हैं। मनीष अग्रवाल ने इस परिवार की चारों पीढ़ियों के साथ मिलकर पता लगाया कि कैसे बदलती गई इनकी जिंदगी।
फोटो में बीकानेरवाला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन केदारनाथ अग्रवाल बीच में बैठे हुए उनके बेटे नवरत्न अग्रवाल बाएं, नवरत्न के बेटे अविरल अग्रवाल दाएंऔर ऋषभ अग्रवाल केदारनाथ अग्रवाल के सबसे बड़े भाई जुगल किशोर के पड़पोते, बीच में
पहली पीढ़ी का संघर्ष
केदारनाथ बताते हैं, मुझे आज भी याद है वो दिन जब मैं बीकानेर से बड़े भाई साहब सत्यनारायण के साथ 55 साल पहले दिल्ली आया था। हम बीकानेर से नमकीन भुजिया और रसगुल्ले मंगाकर चांदनी चौक में बेचते। मैं बाल्टी हाथों में लटकाकर सिनेमा हॉल और अन्य जगह रसगुल्ले बेचता, बड़े भाई साहब चाय वालों को भुजिया।
फिर हमें परांठे वाली गली में एक कमरा मिला, इसके बाद नई सड़क पर अलमारी नुमा दुकान मिल गई। फिर मोती बाजार में दुकान मिली। एक बार बड़े भाई साहब जुगल किशोर बीकानेर से आए तो बोले कि तुम्हें बीकानेर से भुजिया बेचने भेजा था, मिठाई में कहां फंस गए। इसके बाद हम लोगों ने बीकानेरी भुजिया के काम को अधिक बढ़ाना शुरू किया। खोमचे वाले भी नमकीन ले जाने लगे।
नमकीन इतनी फेमस हो गई कि राशनिंग करनी पड़ी। तब कागज की पुड़िया में भुजिया बेचते थे। मोती बाजार के बाद चांदनी चौक में दुकान मिली और करीब 50 साल पहले करोल बाग में, जहां से हमने अपनी कंपनी शुरू कर दी।
काम बढ़ता गया, हम देश में कई जगह आउटलेट खोलते गए। अब तो देश-विदेश में करीब 135 आउटलेट्स हैं। बीकानेरवाला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी है जिसे दुनिया मानती है और केदारनाथ उसके चेयरमैन हैं। कभी उनकी पत्नी नौरती देवी 81हाथों से खाना बनाकर स्टाफ को भी खिलाती थीं।
हमने देश-विदेश से बेहतर मशीनें मंगाई। उत्पादन क्षमता बढ़ी और मैनवली हस्तक्षेप कम हुआ। स्वीटस और रेस्टोरेंट्स चेन शुरू की गई, फ्रेंचाइजी देना शुरू किया। पहले ट्रांसपोर्टेशन के साधन कम थे। लेकिन हमारे समय बस और ट्रेनों का सफर हवाईजहाजों में बदलने लगा। इससे समय की बचत होने लगी। फिर फोन लाइन में भी बड़ी क्रांति हुई। जिस काम को करने में पहले कई-कई दिन लग जाते थे
, ट्रांसपोर्ट और फोन में हुई बेहतर सुविधा ने इसे आसान बना दिया। पहले कोल्ड स्टोरेज की गाड़ियां बहुत कम थी या होती ही नहीं थी। लेकिन इसमें भी जबरदस्त क्रांति आई। अब अच्छे से अच्छे फ्रोजन कंटेनर आने लगे। मसालों को पीसने का सिस्टम इन हाउस बहुत अच्छा हो गया। बनाए गए सामान की गुणवत्ता जांचने के लिए भी टेस्टिंग लैबस में अच्छी और आधुनिक मशीनें आने लगी।