जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे ये हैं भारत की देसी गाय की नस्ले ;

अभी तक लोगों को गायों की साहीवाल, गिर, थारपारकर जैसी देसी नस्लों के बारे में ही पता है, लेकिन आज हम ऐसी ही गाय की देसी नस्लों के बारे में बता रहे हैं जिनमें से कई विलुप्त हो गईं हैं और कुछ विलुप्त होने के कागार पर हैं। मध्य प्रदेश के सतना जिले में गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र में देश की विलुप्त हो रहीं देसी गाय की नस्लों के संरक्षण और नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है। 

यह केंद्र पिछले 25 वर्षों से देसी गायों की नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए शोध कर रहा है। इस केंद्र में देश की 14 नस्लों के गोवंश एक साथ मिल जाएंगे। यह भी पढ़ें- आप भी ऐसे शुरु कर सकते हैं

डेयरी का व्यवसाय अभी अनुसंधान केन्द्र में साहीवाल पंजाब, हरियाणा हरियाणा, गिर गुजरात, लाल सिंधी उत्तरांचल, मालवी मालवा मध्यप्रदेश,देवनी मराठवाड़ा महाराष्ट्र, लाल कंधारी बीड़ महाराष्ट्र राठी राजस्थान, नागौरी राजस्थान, खिल्लारी महाराष्ट्र, वेचुर केरल, थारपरकर राजस्थान, अंगोल आन्ध्र प्रदेश, काकरेज गुजरात जैसी देसी गायों के नस्ल संरक्षण पर अनुसंधान चल रहा है।

भारतीय गोवंश की नस्लें साहीवाल प्रजाति: हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश  साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।

गिर प्रजाति: गुजरात गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ गुजरात के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है।

जानिए लाल सिंधी प्रजाति: पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। अब लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं।

राठी प्रजाति: राजस्थान भारतीय राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6 -8 लीटर दूध देती है।

कांकरेज प्रजाति: राजस्थान कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें बाड़मेर, सिरोही तथा जालौर ज़िले मुख्य हैं। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती है। कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुँह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अतः इसी कारण इस नस्ल के गौवंश को ‘द्वि-परियोजनीय नस्ल’ कहा जाता है।

थारपरकर प्रजाति: राजस्थान यह गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है। थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल ‘मालाणी’ बाड़मेर है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे ‘मालाणी नस्ल’ के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं।

हरियाणवी प्रजाति: इस नस्ल की गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं इसलिए हरियाणवी नस्ल की गायें सर्वांगी कहलाती हैं। देवनी प्रजाति आंध्रप्रदेश, कर्नाटक देवनी प्रजाति के गोवंश गिर नस्ल से मिलते-जुलते हैं। इस नस्ल के बैल अधिक भार ढोने की क्षमता रखते हैं। गायें दुधारू होती हैं।

 

 

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